अब 17 पिछड़ी जातियां बन जाएँगी अनुसूचित
यू पी में सपा की सरकार बनते ही महत्वपूर्ण फैसले लेना शुरू कर कर दिए है, और हो भी क्यूँ न क्यूंकि मुख्यमंत्री युवा अखिलेश जो है, लेकिन हर फैसला सब के हित में नहीं हो सकता है, किसी को ख़ुशी तो किसी को निराशा हाथ लगती है/
यू पी में भी फिलहाल एक मुद्दे पर विचार चल रहा है, और वो मुद्दा है पिछड़ी जातियों को अनुसूचित में शामिल करना/ वो जातियां हैं, कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बिन्द, भर, प्रजापति,राजभर, बाथम, गौर, तुरा, माझी, मल्लाह, कुम्हार,धीमर और मछुआ/ हाँ ये एक ऐसा मुद्दा है जहाँ न्याय करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, क्योंकि अगर हम बात करें पिछड़ी जातियों की तो इनकी संख्या लगभग ७६ है और आरक्षण 27 % है, वहीँ दूसरी ओर अनुसूचित जातियां उसमे भी लगभग 65 जातियां है और आरक्षण है 22.5 % तो अगर बात की जाए यू पी सरकार के फैसले की तो पिछड़ी 76 जातियों में से 17 निकलकर अनुसूचित में जाती है तो पिछड़ी में बचती है 59, तो इसका मतलब पहले से अब पिछड़े बर्ग को नौकरी में थोड़ी कम प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी, वहीँ अगर बात करें अनुसूचित की 65 जातिओं में 17 जोड़ दी जाये तो होती हैं 82 मतलब साफ़ है अब प्रतिस्पर्धा का ग्राफ बाद जाएगा, और अनुसूचित जातियों में भी तनाव की स्तिथि बन्ने की संभवना है/
आखिर कब तक जातियां आरक्षण के लिए लड़ती रहेंगी, जबकि जातिबाद का श्रेय जाता है, हमारे देश की बढती हुई जनसँख्या को, क्योंकि जनसँख्या का भार बढता ही जा रहा है, और लोगों में अभी भी जागरूकता का आभाव है, और जागरूकता तभी आ सकती है जब इसके लिए शिक्षा को बढावा दिया जाए क्योंकि आज भी लगभग 67 % जनसँख्या गाँव में निवास करती है और वहां लोगों में इतनी जागरूकता नहीं है, वहां एक - एक परिवार में काफी बच्चे होते है और जाहिर सी बात है की इंसान किसी न किसी जाती से तो संबध तो रखता ही है, और फिर बात आती है, उनकी शिक्षा से लेकर नौकरी तक में आरक्षण की तो, मतलब साफ़ है की लोगों को अपने से सुधार शुरू करना होगा वरना आने वाले समय में पार्को में घुमने और शौचालय उपयोग करने के लिए भी आरक्षण की जरूरत पड़ेगी/
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